गौड़ क्षत्रिय राजवंश
गौड़ क्षत्रिय भगवान श्रीराम के छोटे भाई भरत के वंशज हैं। ये विशुद्ध सूर्यवंशी कुल के हैं। जब श्रीराम अयोध्या के सम्राट बने तब महाराज भरत को गंधार प्रदेश का स्वामी बनाया गया। महाराज भरत के दो बेटे हुये तक्ष एवं पुष्कल जिन्होंने क्रमशः प्रसिद्द नगरी तक्षशिला (सुप्रसिद्ध विश्वविधालय) एवं पुष्कलावती बसाई (जो अब पेशावर है)। एक किंवदंती के अनुसार गंधार का अपभ्रंश गौर हो गया जो आगे चलकर राजस्थान में स्थानीय भाषा के प्रभाव में आकर गौड़ हो गया। महाभारत काल में इस वंश का राजा जयद्रथ था। कालांतर में सिंहद्वित्य तथा लक्ष्मनाद्वित्य दो प्रतापी राजा हुये जिन्होंने अपना राज्य गंधार से राजस्थान तथा कुरुक्षेत्र तक विस्तृत कर लिया था। पूज्य गोपीचंद जो सम्राट विक्रमादित्य तथा भृतहरि के भांजे थे इसी वंश के थे। बाद में इस वंश के क्षत्रिय बंगाल चले गए जिसे गौड़ बंगाल कहा जाने लगा। आज भी गौड़ राजपूतों की कुल देवी महाकाली का प्राचीनतम मंदिर बंगाल में है जो अब बंगलादेश में चला गया है।
बंगाल के गौड़
बंगाल में गौड़ राजपूतों का लम्बे समय तक शासन रहा। चीनी यात्री ह्वेन्शांग के अनुसार शशांक गौड़ की राजधानी कर्ण-सुवर्ण थी जो वर्तमान में झारखण्ड के सिंहभूमि के अंतर्गत आता है। इससे पता चलता है कि गौड़ साम्राज्य बंगाल (वर्तमान बंगलादेश समेत) कामरूप (असाम) झारखण्ड सहित मगध तक विस्तृत था। गौड़ वंश के प्रभाव के कारण ही इस क्षेत्र को गौड़ बंगाल कहा जाने लगा । शशांक गौड़ इस वंश का सबसे प्रतापी राजा था जो सम्राट हर्षवर्धन का समकालीन था तथा सम्पूर्ण भारत वर्ष पर शासन करने की तीव्र महत्वकांक्षा रखता था। शशांक गौड़ ने हर्षवर्धन के भाई प्रभाकरवर्धन का वध किया था। इसके बाद एक युद्ध में हर्षवर्धन ने शशांक गौड़ को पराजित किया और उसकी महत्वकांक्षाओं को बंगाल तक ही सीमित कर दिया। शशांक गौड़ के बाद इस वंश का पतन हो गया। बाद में इसी वंश के किसी क्षत्रिय ने गौड़ बंगाल में समृद्ध एवं शक्तिशाली पालवंश की नींव रखी। पाल वंश के अनेक शिलालेखों तथा अन्य दस्तावेजों से प्रमाणित होता है कि ये विशुद्ध सूर्यवंशी थे। लेकिन बोद्ध धर्म को प्रश्रय देने के कारण ब्राह्मणवादियों ने चन्द्रगुप्त तथा अशोक महान की तरह इन्हें भी शुद्र घोषित करने का प्रयास किया है। सम्राट हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद भारत कई राज्यों में बंट गया और अगले 100 वर्षों तक कन्नौज पर अधिपत्य के विभिन्न क्षत्रिय राजाओं के बीच संघर्ष होता रहा क्यूंकि मगध के पतन के बाद भारतवर्ष का नया सत्ता शीर्ष कन्नौज बन चूका था तथा कन्नौज अधिपति ही देश का सम्राट कहलाता था। कन्नौज के लिए हुये इस संघर्ष में शामिल तत्कालीन भारत के प्रमुख तीन राजवंशों में गुर्जर प्रतिहार, राष्ट्रकूट के अलावा बंगाल का पाल वंश(गौड़) था। उस समय चोथी शक्ति के रूप में बादामी के चालुक्य (सोलंकी) तेजी से उभर रहे थे। पाल वंश के पतन के बाद पर्शियन आक्रान्ता बख्तियार खिलजी ने जब बंगाल पर हमले किये और उसे तहस नहस कर दिया तब गौड़ राजपूतों का बड़ी संख्या में बंगाल से राजस्थान की तरफ पलायन हुआ।
राजस्थान में गौड़ राजपूत
राजस्थान में गौड़ प्राचीन काल से ही रहते आये है, मारवाड़ क्षेत्र में एक क्षेत्र आज भी गौड़वाड़ व गौड़ाटी कहलाता है, जो कभी गौड़ राजपूतों के अधिकार क्षेत्र में रहा और वहां वे निवास करते थे। राजपूत वंशावली के अनुसार सबसे पहले सीताराम गौड़ बंगाल से राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में आये। यही से बाहरदेव व नाहरदेव दो गौड़ कन्नौज सम्राट नागभट्ट द्वितीय के पास पहुंचे। जिनको नागभट्ट ने कालपी व नार (कानपुर) क्षेत्र जागीर में दिया। इन्हीं के वंशज आज उत्तर प्रदेश के इटावा बदायूं, कन्नौज, मोरादाबाद अलीगढ में निवास करते हैं। नार क्षेत्र में आगे की पीढ़ियों में हुये वत्सराज, वामन व सूरसेन नामक गौड़ वि.स. 1206 में पुष्कर तीर्थ स्नान हेतु राजस्थान आये। उस समय दहिया राजपूत अजमेर में चैहानों के सामंत थे। जिन्होंने चैहानों से विद्रोह कर रखा था.। तत्कालीन चैहान शासक विग्रहराज तृतीय ने विद्रोह दबाने गौड़ों को भेजा। गौड़ों ने दहियाओं का विद्रोह दबा दिया तब प्रसन्न होकर चैहान शासक ने इनको केकड़ी, जूनियां, देवलिया और सरवाड़ के परगने जागीर में दिये। वत्सराज के अधिकार में केकड़ी, जूनियां, सरवाड़ व देवलिया के परगने रहे वहीं वामन के अधिकार में मोठड़ी, मारोठ परगना रहा। महान राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चैहान के कई प्रसिद्ध गौड़ सामंत थे। जिनमें रण सिंह गौड़ तथा बुलंदशहर का राजा रणवीर सिंह गौड़ प्रमुख थे। पृथ्वीराज रासो में और भी कई गौड़ सामंतों का जिक्र आता है। चंदरबरदाई ने गौडों की प्रशंसा में लिखा है
‘‘बलहट बांका देवड़ा, करतब बांका गौड़
हाडा बांका गाढ़ में, रण बांका राठौड़।’’
वहीं कर्नल टॉड ने लिखा है कि गौड़ राजपूत अपने समय के सर्वश्रेष्ठ घुड़सवार थे। टॉड के अनुसार एक समय इस जाति का राजस्थान में अत्यंत सम्मान था, जो बाद में धीरे धीरे समाप्त हो गया। पृथ्वीराज चैहान की हार के बाद राजस्थान में गौडों की शक्ति भी क्षीण हो गयी। बाद में शाहजहाँ के समय में गोपालदास गौड़ के नेतृत्व में गौडों ने राजस्थान में फिर से एक ऊँचा मुकाम हासिल किया। शहजादा खुर्रम को मुग़ल सम्राट शाहजहाँ बनाने में गोपालदास गौड़ का विशेष योगदान था। गोपालदास गौड़ की कूटनीति तथा सही योजनाओं के कारण ही खुर्रम बादशाह जहाँगीर को अप्रिय होने के बाद भी हिंदुस्तान का सम्राट बन सका। शाहजहाँ ने भी गौड़ राजपूतों को मुगल दरबार में कछवाहों तथा राठौड़ों के समकक्ष जागीरें एवं मनसब दिये। शाहजहाँ के बाद गौड़ राजपूतों ने ओरंगजेब का साथ देना उचित ना समझा । धर्मात के युद्ध में शाहजहाँ की तरफ से जोधपुर नरेश जसवंत सिंह के नेतृत्व में गौड़ राजपूत ओरंगजेब के विरुद्ध लडे । जगभान गौड़ इसमें वीरगति को प्राप्त हुये ।
अजमेर क्षेत्र के गौड़ : वत्सराज के वंशजों में गोपालदास बूंदी चले गये, जहाँ बूंदी शासक हाडा भोज ने उसे लाखेरी की जागीर दी। गोपालदास खुर्रम के साथ दक्षिण को गया, जब खुर्रम ने थट्टा का घेरा डाला तब गोपालदास अपने 17 पुत्रों सहित युद्ध में लड़े और वीरगति को प्राप्त हुये। खुर्रम जब शाहजहाँ के नाम से बादशाह बना तब गोपालदास के पुत्र विट्ठलदास को तीन हजार जात और पन्द्रह सौ सवार का मंसब दिया। विट्ठलदास रणथंभोर व आगरा किले का दुर्गाध्यक्ष भी रहा व कंधार के युद्धों में भी भाग लिया। विट्ठलदास के एक पुत्र अर्जुन के पास अजमेर के निकट राजगढ़ जागीर में था। इसी अर्जुन के हाथों इतिहास प्रसिद्ध वीर अमरसिंह राठौड़ मारे गये थे। अर्जुन के एक भाई के पास सवाई माधोपुर के पास बौल परगना था।
मारोठ क्षेत्र के गौड़ : मारोठ व मोठड़ी के जागीरदार वामन के पौत्र मोटेराव कुचामन के व जालिम सिंह मारोठ के स्वामी बने। इस क्षेत्र में गौड़ों ने अपना प्रभाव बढाया व राज्य विस्तार किया। गौड़ों द्वारा शासित होने के कारण आज भी यह प्रदेश गौड़ाटी के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ के गौड़ों ने आमेर राज्य से भी युद्ध किया था। 16 वीं सदी की शुरुआत में रिड़मल गौड़ मारोठ के शासक हुये, जो क्षेत्र के गौड़ शासकों के पाटवी नेता थे। घाटवा के नजदीक कोलोलाव तालाब पर राव शेखा द्वारा कोलराज गौड़ की हत्या के बाद गौड़ों के निकट संबंधी राव शेखा से 12 लड़ाइयाँ हुई। बारहवीं लड़ाई पूरी गौड़ शक्ति एकत्र कर मारोठ के अनुभवी शासक रिड़मल के नेतृत्व में लड़ी गई और रिडमल को राव शेखा के पुत्र रायमल से संधि करनी पड़ी। ज्ञात हो शेखावाटी व शेखावत वंश के प्रवर्तक राव शेखा इसी युद्ध में, जो घाटवा युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है, विजय के उपरांत ज्यादा घायल होने के चलते वीरगति को प्राप्त हुये थे। इस संधि में रिड़मल ने अपनी पुत्री का विवाह राव शेखा के प्रपोत्र लूणकर्ण के साथ किया और कई गांव भी दिये।
शाहजहाँ के काल में गौड़ों का शाहजहाँ से अच्छा संबंध रहा और वे दिल्ली दरबार में प्रभावशाली रहे, लेकिन औरंगजेब के काल में मारोठ के गौड़ों की स्थिति दिल्ली दरबार में कमजोर रही। इसी कमजोर स्थिति का फायदा उठाते हुये रघुनाथ सिंह मेड़तिया ने गौड़ों से मारोठ छीन लिया और औरंगजेब ने भी मारोठ का परगना रघुनाथसिंह मेड़तिया के नाम कर उसे स्वीकृति दे दी। लेकिन फिर भी पहले से अपेक्षाकृत कमजोर हो चुके गौडों को हराना रघुनाथ सिंह मेड़तिया के लिए संभव ना था । रघुनाथ सिंह मेड़तिया ने इसके लिए अपने सम्बन्धियों कछवाहों का साथ लिया तब जाकर गौडों को पराजित किया जा सका। मारोठ क्षेत्र से ही कुछ गौड़ अलवर, झुंझुनू व अन्य जगह चले गये। मारोठ से गये इन गौड़ों को मारोठिया गौड़ों के नाम से भी जाना जाता है। राजस्थान के इस क्षेत्र में कभी शासक रहे इस वीर राजपूत वंश के स्थानीय इतिहास की काफी सामग्री उपलब्ध है जिस पर और गहन शोध की आवश्यक्ता है । अपने पड़ौसी शेखावत और राठौड़ राजपूतों से इनके वैवाहिक संबंध थे, जिसकी जानकारियां भी इतिहास में प्रचुर मात्रा में मिलती है।
खापें
गौड़ राजपूत वंश की कई उपशाखाएँ (खापें) है जैसे- अजमेरा गौड़, मारोठिया गौड़, बलभद्रोत गौड़, ब्रह्म गौड़, चमर गौड़, भट्ट गौड़, गौड़हर, वैद्य गौड़, सुकेत गौड़, पिपारिया गौड़, अभेराजोत, किशनावत, चतुर्भुजोत, पथुमनोत, विबलोत, भाकरसिंहोत, भातसिंहोत, मनहरद सोत, मुरारीदासोत, लवणावत, विनयरावोत, उटाहिर, उनाय, कथेरिया, केलवाणा, खगसेनी, जरैया, तूर, दूसेना, घोराणा, उदयदासोत, नागमली, अजीतमली, बोदाना, सिलहाला आदि खापें है जो उनके निकास स्थल व पूर्वजों के नाम से प्रचलित है।
उत्तर प्रदेश में गौड़ राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र से बाहरदेव व नाहरदेव दो गौड़ भाई कन्नौज सम्राट नागभट्ट द्वितीय के पास पहुंचे। जिनको नागभट्ट ने कालपी व नार (कानपुर) क्षेत्र जागीर में दिया। इन्हीं के ही वंशज आज उत्तर प्रदेश के कानपुर, एटा, इटावा, गोरखपुर बदायूं, मोरादाबाद तथा अलीगढ में निवास करते हैं।
नार के राजा पृथ्वीदेव गौड़ का विवाह महाराज गोपीचंद राठौड़ की बहिन से हुआ था। जब पृथ्वीदेव एक युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ तो गोपीचंद राठौड़ ने अपने भांजों को बुला कर उन्हें अमेठी (कानपूर) का शासक बना दिया। राजा कान्ह्देव के ये वंशज अमेठिया गौड़ कहलाये। ये अमेठी लखनऊ, सीतापुर जिलों में बसते हैं।
बंगाल से ही एक शाखा मथुरा आयी। दिल्ली सम्राट अनंगपाल तंवर के सेनापति दो गौड़ सगे भाई सूर और घोट थे। इन्होंने वर्तमान बिलराम (मथुरा) को जीता।
पवायन रियासत 1705 में राजा उदयसिंह गौड़ ने रूहिल्ला पठानों को पराजित कर रोहिलखंड उत्तरप्रदेश (महाभारतकालीन पंचाल प्रदेश) में सबसे बड़ी राजपूत रियासत पवायन (जिला शाहजहांपुर) की स्थापना की। जिसका शासन 1947 तक कायम रहा। यहाँ के शासक को राजा की उपाधि धारण करने का अधिकार रहा है।
बुलंदशहर में बसने वाले गौडों के पूर्वज राजस्थान से आये दो भाई थे जिला बिजनोर में भी गौड़ राजपूत बसते हैं। यहाँ मुकुटसिंह शेखावत के नेतृत्व में सोमवती अमावस्य पर गंगा स्नान करने राजस्थान से आये 12 राजाओं ने जिनमें बलभद्रसिंह गौड़ और बुद्धसिंह गौड़ भी शामिल थे, हिन्दु साधुओं की रक्षा आततायी मुस्लिम नवाब फतह उल्ला खान का वध करके की। इसके बाद इन 12 राजाओं ने 84-84 गाँव आपस में बाँट लिए और वहीं पर ही शासन करने लगे।
कानपुर से गौड़ राजपूतों का एक खानदान इलाहाबाद आ गया जो ओरछा के बुंदेलों की सेवा में था। इनके एक सामंत बिहारीसिंह गौड़ ने ओरंगजेब से बगावत की और एक युद्ध में मारे गए। इलाहबाद के डॉक्टर नरेंद्रसिंह गौर उत्तर प्रदेश सरकार में शिक्षा एवं गन्ना मंत्री भी रहे।
मध्य प्रदेश में गौड़ राजपूत
मध्यप्रदेश में शेओपुर (जिला जबलपुर) गौड़ राजपूतों का एक प्रमुख ठिकाना रहा है। 1301 में अल्लाउद्दीन खिलजी ने शेओपुर पर कब्जा किया जो तब तक हमीर देव चैहान के पास था। बाद में मालवा के सुलतान का तथा शेरशाह सूरी का भी यहाँ कब्जा रहा। उसके बाद बूंदी के शासक सुरजन सिंह हाडा ने भी शेओपुर पर कब्जा किया। बाद में अकबर ने इसे मुगल साम्राज्य में मिला लिया। स्वतंत्र रूप से इस राज्य की स्थापना विट्ठलदास गौड़ के पुत्र अनिरुद्ध सिंह गौड़ ने की थी। इनके आमेर का कछवाहा राजपूतों से काफी निकट के और घनिष्ट सम्बन्ध रहे। अनिरुद्ध सिंह गौड़ की पुत्री का विवाह आमेर नरेश मिर्जा राजा रामसिंह से हुआ था। सवाई राजा जयसिंह का विवाह उदयसिंह गौड़ की पुत्री आनंदकंवर से हुआ था। जिससे ज्येष्ठ पुत्र शिवसिंह पैदा हुआ।
सन 1722 में जब जयपुर नरेश सवाई राजा जयसिंह जाटों का दमन करने थुड गए थे, उस समय तत्कालीन शेओपुर नरेश इन्दरसिंह गौड़ अपनी सेना सहित उनकी मदद में उपस्थित रहे। बाद में मैराथन के विरुद्ध भी इन्द्रसिंह गौड़ जय सिंह के साथ रहे। इसके अलावा भोपाल में पेशवाओं के विरुद्ध युद्ध और जोधपुर के विरुद्ध युद्ध में भी इन्दरसिंह गौड़ सवाई राजा की मदद में रहे। इस प्रकार इन्दरसिंह गौड़ ने पूरे जीवन सवाई राजा जयसिंह का साथ दिया। बाद में सिंधियों ने गौड़ों से शेओपुर को जीत लिया।
शेओपुर का 225 साल का इतिहास गवाही है, शानदार गौड़ राजपूत वास्तुकला की। नरसिंह गौड़ का महल हो, राणी महल हो या किशोरदास गौड़ की छतरियां हों, सब अपने आप में बेमिसाल हैं। आज ये शहर मध्यप्रदेश के पर्यटन का एक प्रमुख हिस्सा है।
खांडवा के गौड़
शेओपुर के अलावा खांडवा भी मध्यप्रदेश में गौडों का एक प्रमुख ठिकाना रहा है। अजमेर साम्राज्य के सामंत राजा वत्सराज (बच्छराज) गौड़ (केकड़ी-जूनियां) के वंशज गजसिंह गौड़ और उनके भाइयों ने राजस्थान से हटकर 1485 में पूर्व निमाड़ (खांडवा) में घाटाखेड़ी नमक राज्य स्थापित किया। यह गौड़ राजपूतों का एक मजबूत ठिकाना रहा। वर्तमान में खांडवा के मोहनपुर, गोरड़िया पोखर राजपुरा प्लासी आदि गाँवों में उपरोक्त ठिकाने के वंशज बसे हुये हैं।
किंवदंती है एक गौड़ राजा के प्रताप और तप के कारण ही मध्यप्रदेश की नर्मदा नदी उलटी बहती है
Kalyani Pandey
Managing Director Business Solution
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